शब्दा शब्दी होया उझयाला म्हारे सतगुरु,
भेद बताया है हरि तो म्हाने आपे में ही पाया है
१ - ज्यूँ सुन्दरी सुपने सूत सोई सुपने में भ्रमायो ,
खुल गयी आंख बिसर गयो सपनों किते गयो नही यो है ,
२ - ये मृगे की नाभ कमल कस्तुरी बण - २ मृगो ध्ययो ,
खोजत- २ हार थको है जब उल्ट निरंजन ध्यायो
३ - सुन्दर कमल कण्ठ बिच हीरा आभुषण बिशरायो ,
संग की सहेली ने भेद दियो जब मन को भ्रम मिटायो
४ - क्या सुपने की महिमा गाऊ ज्यू गुंगे गुड़ खायो ,
कहत कबीर सुनो भई साधो वेद वेद कहत संकुचायो ,
भेद बताया है हरि तो म्हाने आपे में ही पाया है
१ - ज्यूँ सुन्दरी सुपने सूत सोई सुपने में भ्रमायो ,
खुल गयी आंख बिसर गयो सपनों किते गयो नही यो है ,
२ - ये मृगे की नाभ कमल कस्तुरी बण - २ मृगो ध्ययो ,
खोजत- २ हार थको है जब उल्ट निरंजन ध्यायो
३ - सुन्दर कमल कण्ठ बिच हीरा आभुषण बिशरायो ,
संग की सहेली ने भेद दियो जब मन को भ्रम मिटायो
४ - क्या सुपने की महिमा गाऊ ज्यू गुंगे गुड़ खायो ,
कहत कबीर सुनो भई साधो वेद वेद कहत संकुचायो ,
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