गुरु थारे बिना बिगड़ी नै कोण सुधारे
१ - एक दिन बिगड़ी गँज ग्रहा की दरिया के किनारे ,
जों भर सुंड रहा जल उपर हरी का नाम पुकारे ,
२ - एक दिन बिगड़ी पिता पुत्र की बांद खम्ब के मारे ,
अपने भगत की सहायता करने नरसिंह देही धारे ,
३ - एक दिन बिगड़ी राज सभा में द्रोपती कृष्ण पुकारे ,
आण सवरियो चिर बढायो दुष्ट दुशासन हारे ,
४ - एक दिन बिगड़ी जन नरसी की समधी के द्वारे ,
आण सावरिये भात भरो भगतो के कारज सारे ,
५ - ज्यू ज्यू भीड़ पड़े भगता पै त्यू -२ कार्ज सारे ,
घिसा संत मिले गुरु पुरे जीता दास पुकारे ,
१ - एक दिन बिगड़ी गँज ग्रहा की दरिया के किनारे ,
जों भर सुंड रहा जल उपर हरी का नाम पुकारे ,
२ - एक दिन बिगड़ी पिता पुत्र की बांद खम्ब के मारे ,
अपने भगत की सहायता करने नरसिंह देही धारे ,
३ - एक दिन बिगड़ी राज सभा में द्रोपती कृष्ण पुकारे ,
आण सवरियो चिर बढायो दुष्ट दुशासन हारे ,
४ - एक दिन बिगड़ी जन नरसी की समधी के द्वारे ,
आण सावरिये भात भरो भगतो के कारज सारे ,
५ - ज्यू ज्यू भीड़ पड़े भगता पै त्यू -२ कार्ज सारे ,
घिसा संत मिले गुरु पुरे जीता दास पुकारे ,
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