है संत हरी के लाडले जिनका है पन्त निराला
१ - घर छोड़े ना फिरते वन में ना वो भस्म रमाते
तन में
राजी रहे हरी के भजन में जिन्हें गुरु वचन को माना
उनका खुल गया भ्रम वाला ताला
२ - ना वो घोट्म घोट कराते ना वो सर पे जटा
रखाते
ना मस्तक पर तिलक लगाते
वो राजी हरी के भजन में ना फेरे तस्वी माला
३ - कपड़ा रंगे ना शान बनाते ना वो जग में ढोंग
रचाते
सबसे मिल कर जग में रहते वे झिन्हे मार्ग चालते
ना ओड़े वो शाल दुशाला
४ - जिन्हें पद में सुरत सुमोही अमरपुरी जाते
है वोही
मंगल कहे सुनो सब कोई
वो अमरपुरी में जायके पीते है अमृत प्याला
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