मनवा तेरी आदत ने कोई बदलेगे हरीजन सुर ,
१ - क्या बदलेगे चोर जुवारी माया के मजदूर
मदिरा मांस भखे मस्ताने रहे नशे में चूर
२ - पांचो ठगनी घर ने लुटे म्हारे तृष्णा हुर
बिन समझे नर बहुत ही लुटगे मचगा जगत में फतूर ,
३ - पंच विषयों में लतपत रहता सदा मती का कूर
उनको सुख सपने नाहि उनसे है मालिक दूर ,
४ - उझल कर्म हरी की भगती सत्संग करो जरुर
जन्म जन्म के पाप कटेगे हो जागें माफ कसूर ,
५ - सत चित आनंद मिले गुरु पुरे भ्रम होया सब दूर
संत दयोत राम समझ का मेला दर्शा है बेहद नूर
१ - क्या बदलेगे चोर जुवारी माया के मजदूर
मदिरा मांस भखे मस्ताने रहे नशे में चूर
२ - पांचो ठगनी घर ने लुटे म्हारे तृष्णा हुर
बिन समझे नर बहुत ही लुटगे मचगा जगत में फतूर ,
३ - पंच विषयों में लतपत रहता सदा मती का कूर
उनको सुख सपने नाहि उनसे है मालिक दूर ,
४ - उझल कर्म हरी की भगती सत्संग करो जरुर
जन्म जन्म के पाप कटेगे हो जागें माफ कसूर ,
५ - सत चित आनंद मिले गुरु पुरे भ्रम होया सब दूर
संत दयोत राम समझ का मेला दर्शा है बेहद नूर
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