गुरु जी म्हारे अवगुण चित न धरो
समदर्शी है नाम तिहारो सोई पार करो
१ - एक नदिया एक नाल कुहावे मेलो ही नीर भरो ,
होए वर्ण जब एक ही दर्शो दुजो भेद टरो ,
२ - एक लोहा पुजा में रहवे एक घर बधिक परो,
पारस धात कुधात न जाणे कंचन खरत खरो ,
३ - एक जीव एक ब्रहम कुहावे भेदा भ्रम परो,
होई विवेक एक ही दरसो दुजो भेद टरो,
४ - एक स्वामी एक दास कुहावे सुरशाम झगरो ,
इब की बेर मोहे पार उतारो नही मोसर जात टरो ,
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