मन परदेशी रे ये नही अपना देश ,
१ - सत का कहना सत में रहना आनंद रूप किसी का भय ना ,
जो कोई कहदे सबकी सहना ये है रटन हमेश ,
२ - गुरु वचन को सत कर मानो जगत जाल सब झूठा जानो ,
तत तोग मसी का रूप पिछानो क्ट्जा कर्म क्लेश ,
३ - जो दिखे सो रूप हमारा कोई नही है हम से न्यारा ,
ना कोई बैरी मित्र हमारा मिट गये राग द्वेश ,
४ - जिनके सम दृष्टि मन में होई विचरे संत फिरे निरमोही ,
दुबधा दुरमत रहे ना कोई तिनके नाम दुखेश ,
५ - शाह गुरु सुखदेव विराजे चरण दास चरणों में साजे ,
गुरु वचन को कबहू ना त्यागे ये है सचा उपदेश ,
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