सत्संग गंग की धारा कोई नहावेगा नहावणया
१ - इस गंग में नहा गए वाल्मिक जी
जिन मानी ऋषियो कि सिख जी
हो गये भव सागर पार वो मोह ममता के मारण्या ,
2 - इस गंग में नहा गये हरिश्चद्र दानी
काशी में बिक गये तिन प्राणी
वो लड़का राजा-रानी वो अपना धर्म निभावन्या ,
३ - इस गंग में नहा गये मोरधज राजा
दिया शेर को पुत्र का खाजा
धरा शीश पर आरा धनी आप बना अजमावणया
४ - कह गये गुरु श्रधा नाथ जी
इस घर में न जात-पात जी
कबीर घर रचा भंडारा वो भीलनी के बेर खावणया
१ - इस गंग में नहा गए वाल्मिक जी
जिन मानी ऋषियो कि सिख जी
हो गये भव सागर पार वो मोह ममता के मारण्या ,
2 - इस गंग में नहा गये हरिश्चद्र दानी
काशी में बिक गये तिन प्राणी
वो लड़का राजा-रानी वो अपना धर्म निभावन्या ,
३ - इस गंग में नहा गये मोरधज राजा
दिया शेर को पुत्र का खाजा
धरा शीश पर आरा धनी आप बना अजमावणया
४ - कह गये गुरु श्रधा नाथ जी
इस घर में न जात-पात जी
कबीर घर रचा भंडारा वो भीलनी के बेर खावणया
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