Tuesday, 3 January 2017

बहुरि नहिं आवना या देस

बहुरि नहिं आवना या देस॥ टेक॥

जो जो ग बहुरि नहि आ  पठवत नाहिं सॅंस॥ १॥
सुर नर मुनि अरु पीर औलिया  देवी देव गनेस॥ २॥
धरि धरि जनम सबै भरमे हैं ब्रह्मा विष्णु महेस॥ ३॥
जोगी जङ्गम औ संन्यासी  दीगंबर दरवेस॥ ४॥
चुंडित  मुंडित पंडित लो  सरग रसातल सेस॥ ५॥
ज्ञानी  गुनी  चतुर अरु कविता  राजा रंक नरेस॥ ६॥
को राम को रहिम बखानै  को कहै आदेस॥ ७॥
नाना भेष बनाय सबै मिलि ढूंढि फिरें चहुॅं देस॥ ८॥
कहै कबीर अंत ना पैहो  बिन सतगुरु उपदेश॥ ९॥

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