क्यों चाल चले है काग की मैंने हंस जाण के पाला
१ - मै समझा हंस के बच्चे बहुत से चुगाये मोती सचे तुम तो
निकले मती के कच्चे,
विरती बदली नही निरभाग की तेरा मन बिस्टे पर चाला,
२ - लगवाया था बाग इनामी बोए आम कंडाई जामी पता नही
क्यों पड़ गयी खामी,
शक्ल बिगड़ गयी बाग की कर लिया पेड़ निराला,
३ - दुध पिलाया बनके प्यारा पता नही क्यों पाट्या न्यारा
पल में खेल बिगड़ गया सारा,
खबर नही थी नाग की खुद बन गया डसने वाला,
४ - के मै पढ़ाया के तू पढ़गया घोडा छोड़ गधे पै चढगया
पल में आया छण में उड़गया,
कदे बात सुनी ना ज्ञान की तैने क्यों करा लिया मुह काला,
५ - वचन सुनो तुम धर्मी दासा छोडो झूठे जगत की आशा पल
में पलटो मन का पासा,
कह रहे साहेब कबीर रे तुम हंस के जीतो पाला,
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