म्हारे सारे दुख बिसर गये सतगुरु की हमने शरण लेई
१ – और सखी सब दुबली हे तू बिरहन क्यों लाल ,
अविनाशी की सेज पे हे मोजां तो बहि निहाल ,
२ – अविनाशी की सेज का हे कहो कितना विशतार
कहन सुनन का गग नही हे निरखा तो आगया पार ,
३ – सतवंती तो पीहर बसे हे अन्त पिव का धयान
कहती तो लांजा बहि हे एसो है आत्म ज्ञान ,
४ – ब्याही संग क्वारी मिली हे अट-बट बोले बैन
ब्याही संग ब्याही मिली हे मिली सैन में सैन ,
५ – हँशी नही मुशका गयी हे रही टका टक नैन ,
कहे कबीर लख गयी हे सखी ही सखी की सैन ,
१ – और सखी सब दुबली हे तू बिरहन क्यों लाल ,
अविनाशी की सेज पे हे मोजां तो बहि निहाल ,
२ – अविनाशी की सेज का हे कहो कितना विशतार
कहन सुनन का गग नही हे निरखा तो आगया पार ,
३ – सतवंती तो पीहर बसे हे अन्त पिव का धयान
कहती तो लांजा बहि हे एसो है आत्म ज्ञान ,
४ – ब्याही संग क्वारी मिली हे अट-बट बोले बैन
ब्याही संग ब्याही मिली हे मिली सैन में सैन ,
५ – हँशी नही मुशका गयी हे रही टका टक नैन ,
कहे कबीर लख गयी हे सखी ही सखी की सैन ,
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