Tuesday, 3 January 2017

राम बिनु तन को ताप न जाई।


राम बिनु तन को ताप न जाई।
जल में अगन रही अधिकाई॥
राम बिनु तन को ताप न जाई॥

तूने रात गँवायी

तूने रात गँवायी

तूने रात गँवायी सोय के, दिवस गँवाया खाय के।
हीरा जनम अमोल था, कौड़ी बदले जाय॥

नैया पड़ी मंझधार्

नैया पड़ी मंझधार्
नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार्॥

बीत गये दिन

बीत गये दिन

बीत गये दिन भजन बिना रे।
भजन बिना रे  भजन बिना रे॥

भजो रे भैया

भजो रे भैया

भजो रे भैया राम गोविंद हरी।

मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में॥

मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में॥

जो सुख पाऊँ राम भजन में
सो सुख नाहिं अमीरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में॥

बहुरि नहिं आवना या देस

बहुरि नहिं आवना या देस॥ टेक॥

जो जो ग बहुरि नहि आ  पठवत नाहिं सॅंस॥ १॥
सुर नर मुनि अरु पीर औलिया  देवी देव गनेस॥ २॥

केहि समुझावौ सब जग अन्धा

केहि समुझावौ सब जग अन्धा॥ टेक॥

इक दु होयॅं उन्हैं समुझावौं  सबहि भुलाने पेटके धन्धा।
पानी घोड पवन असवरवा  ढरकि परै जस ओसक बुन्दा॥ १॥

दिवाने मन भजन बिना दुख पैहौ

दिवाने मन  भजन बिना दुख पैहौ ॥ टेक॥

पहिला जनम भूत का पै हौ  सात जनम पछिताहौ।
कॉंटा पर का पानी पैहौ  प्यासन ही मरि जैहौ॥ १॥

झीनी झीनी बीनी चदरिया

झीनी झीनी बीनी चदरिया॥ टेक॥

काहे कै ताना काहे कै भरनी  
      कौन तार से बीनी चदरिया॥ १॥

रे दिल गाफिल गफलत मत कर

रे दिल गाफिल गफलत मत कर  
     एक दिना जम आवेगा॥ टेक॥

सौदा करने या जग आया  
     पूजी लाया  मूल गॅंवाया 
प्रेमनगर का अन्त न पाया  
     ज्यों आया त्यों जावेगा॥ १॥

करम गति टारै नाहिं टरी

करम गति टारै नाहिं टरी॥ टेक॥

मुनि वसिष्ठ से पण्डित ज्ञानी  सिधि के लगन धरि।
सीता हरन मरन दसरथ को  बनमें बिपति परी॥ १॥

Monday, 2 January 2017

है संत हरी के लाडले जिनका है पन्त निराला

है संत हरी के लाडले जिनका है पन्त निराला


१ - घर छोड़े ना फिरते वन में ना वो भस्म रमाते तन में
       राजी रहे हरी के भजन में जिन्हें गुरु वचन को माना
       उनका खुल गया भ्रम वाला ताला

हम बालक तू पिता है हमारा और निभाओ दीन के मुरारा


हम बालक तू पिता है हमारा और निभाओ दीन के मुरारा


१ - इशारे से मुजको बुलाती है दुनिया तेरे रास्ते से हटाती है दुनिया
       न देखु मै जग का ये झूठा इशारा

सुगरे की साधो यही है पहचान

सुगरे की साधो यही है पहचान

१ - दृढ़ विश्वास धर के मन में गुरु की शरण में जाता है
       रहता है जी उसी ध्यान में जो सुनता आत्म ज्ञान

सचे गुरु का जो प्यारा होगा उसको प्रभु का सहारा होगा

सचे गुरु का जो प्यारा होगा उसको प्रभु का सहारा होगा
सदा ऊँचा भाई रे सितारा होगा

१ - आयेगा जो सचे सतगुरु की शरण में
      ईश्वर के दर्शन करा दे एक छण में
      केवल गुरु का इशारा होगा

तेरे सभी खेल अख्तयार है तू सब खेलो का ख्याली


तेरे सभी खेल अख्तयार है तू सब खेलो का ख्याली


१ - तू बाजीगर कहए पूरा तिन लोक में रचा जहूरा
   धर चन्द्र अम्बर और सूरा  तेरे चोधह लोक विस्तार है तेरी महिमा वेद निराली

भगवान भगत के बस में सदा से होते आये जी


भगवान भगत के बस में सदा से होते आये जी


१ - भगत ने डारा फंदा आप बने हर नाई नन्दा
       प्रेम से चरण दबाये

बाणा बदलो सो - २ बार बाण बदल ज्या बेड़ा पार

बाणा बदलो सो - २ बार बाण बदल ज्या बेड़ा पार


१ - क्व़े की चोच सोने से मंडा दो करो हंस की लार
      क्वा कुभद बाण ना छोड़े वो तो आदत से लाचार

जिसने सत्संग ना भावे वो तो कर्मा का माड़ा जी

जिसने सत्संग ना भावे वो तो कर्मा का माड़ा जी

१ - उल्लू को भान कबहू ना भावे
      युग तो बीतो चाहे  सारा

गुरु के चरना लाग्या रहे सोही संत सियाना

गुरु के चरना लाग्या रहे सोही संत सियाना


१ - तन मन का बेरा नही घट सुध न जाना
      मन बैरागी होए रहा नही मिला ठिकाना

हो होशियार रहो गुरु आगे दिल साबत फिर डरना क्या

हो होशियार रहो गुरु आगे दिल साबत फिर डरना क्या
इस दुनिया में घना रे अँधेरा बार-बार नर फिरना क्या



१  – हित कर खेती धनिया सेती रात दिना नर सोवना क्या ,
         आवंगे पक्षी चुग जांगे खेती फिर कर्मा नै रोवना क्या  ,

हेली हम परदेसी लोग बोहड़ नही आवागे

हेली हम परदेसी लोग बोहड़ नही आवागे



१- शुन्न विच शहर , शहर विच बस्ती
    शुन्न में ही नगर बसावां गे हेली हम परदेसी लोग


हे दिन दयाल स्वामी सतगुरु श्री सुरजभान जी मेरे तेरी दया पर निर्भर काटो जाल फंद मेरे

हे दिन दयाल स्वामी सतगुरु श्री सुरजभान जी मेरे
तेरी दया पर निर्भर काटो जाल फंद मेरे



१  – दिया मानुष जन्म मुझको मै बन्दगी करूं तेरी ,
         पर नाथ मनवा चंचल बना विषयों का पुजारी ,
         इससे उभारो मुझको सामर्थ स्वामी मेरे ,


हम है व्यापारी राम नाम के प्रेम नगर म्हारो गाम

हम है व्यापारी राम नाम के प्रेम नगर म्हारो गाम
        कोई लेलो जी लेलो हरी का नाम



१ - प्रेम नगर से चल कर आया सोदा राम नाम का लाया
      राम नाम अनमोल रतन है कोडी लगे ना दाम

हम तो उन भक्तो के हैं दास जिन्होंने मनवा मार लिया

हम तो उन भक्तो के हैं दास जिन्होंने मनवा मार लिया



१ - मन मारा तन वश किया सभी भ्रम भये दूर ,
   बाहर तो कुछ दिखे नाही अंदर झलके नूर ,

सुरता नार चतर अलबेली हे तु भुल गई करतार

सुरता नार चतर अलबेली हे तु भुल गई करतार



१ - सुपने में देखे तीर्थ मन्दिर सुपने में पूजे
   पीर पैगम्बर सुपने में हाट हवेली हे ,

सुनो मेरे रिझाने का सरल रश्ता बताऊ मै

सुनो मेरे रिझाने का सरल रश्ता बताऊ मै
ये कहना साफ गलती है तुमे कैसे रिझाऊ मै



१  – रिझाना जो मुझे चाहे विदुर से पूछ लो रस्ता
            सुदामा की झपट गठरी खड़ा चावल चबाऊ मै ,

सुना हे हमने गुरु अपने का ज्ञान

सुना हे हमने गुरु अपने का ज्ञान



१  – जल से महीन पवन से झीना न वाके जिव जहान  ,
    क्या मै वाँ को वर्ण बताऊ लो लागे ना ध्यान  ,

साचे दिल के मित हरी जी साचे दिल के मिता

साचे दिल के मित हरी जी साचे दिल के मिता


१ - कब भीलनी काशी पढ़ आई कब पढ़ आई गीता
      झूठे बेर हरी नै खाए नेक शरम नही किता

सत्संग सभा में सदा गुरु सरदार है आज भी है और सदा ही रहेगा

सत्संग सभा में सदा गुरु सरदार है
आज भी है और सदा ही रहेगा

१ - अजब दिवस भई आज पुर्बली करनी जागी
मैंने सतगुरु मिले सुजान भ्रमणा झट पट भागी
मुक्त मणि के नीत गुप्त भंडार है
आज भी ........

सत्संग गंग की धारा कोई नहावेगा नहावणया

सत्संग गंग की धारा कोई नहावेगा नहावणया



१ - इस गंग में नहा गए वाल्मिक जी
     जिन मानी  ऋषियो कि सिख जी
     हो  गये भव सागर पार वो  मोह  ममता  के मारण्या ,

सतगुरु स्वामी अंतरयामी घट की जाणन हारे ने

सतगुरु स्वामी अंतरयामी घट की जाणन हारे ने
अनेक रूप धर जग में आये दुबे बेड़े तारे ने



१ - सुभ दिन गुरु पुजा का आया गुरु की पुजा करिये जी
     गुरु चरणों में चातक होकर गुरु का पाणी भरिये जी
     राम लक्ष्मण गुरु चरणों को प्रेम से चापन हारे ने

सतगुरु म्हारे करो बेड़ा ने पार

सतगुरु म्हारे करो बेड़ा ने पार



१ - मै तेरे चरण निवाऊ मै माथा स्वामी तुम बल बुधि के दाता
      हो बार- बार बलिहार ,

संकट में साधो हिरनी हरे राम पुकारी

संकट में साधो हिरनी हरे राम पुकारी



१ - जब हिरनी के कष्ट होयो होई डार से न्यारी ,
   आधा बच्चा बाहर गर्भ से गेल होयो फन्दकारी ,

शरण सतगुरु जी हम तेरी-२ महिमा निराली है

शरण सतगुरु जी हम तेरी-२ महिमा निराली  है


१  – तेरे चरणों में हे भगवन हम कुर्बान हैं स्वामी  ,
          तुम सब के विधाता हो तुम इस बाग के माली ,

शब्दा शब्दी होया उझयाला म्हारे सतगुरु, भेद बताया

शब्दा शब्दी होया उझयाला म्हारे सतगुरु,
भेद बताया है हरि तो म्हाने आपे में ही पाया है



१ - ज्यूँ सुन्दरी सुपने सूत सोई सुपने में भ्रमायो ,
      खुल गयी आंख बिसर गयो सपनों किते गयो नही यो है ,

वाह वाह मोज फकीरा दी

वाह वाह मोज फकीरा दी


१ – कदे तो ओढ़े शाल दुशाले ,
       कदे गुदडिया लीरा दी ,

रामा रामा रटते -२ बीती रे उमरिया

रामा रामा रटते -२ बीती रे उमरिया
रघुकुल नंदन कब आवोगे भीलनी की डगरिया



१ - मै भिलनी सबरी की जाई भजन भाव नही जाणु रे
      राम तुम्हारे दर्शन के हित बण में जीवन पालु रे
       चरण कमल से निर्मल करदो दासी की झुपड़िया

म्हारे घट में सावरियो थारो नाम इब नही भुलुगी

म्हारे घट में सावरियो थारो नाम इब नही भुलुगी


१ - साधु आयो सहर में भई मीरा सुनी आवाज
       टक टक महला उतरी रे भर मोतियन को थाल

म्हारे सारे दुख बिसर गये सतगुरु की हमने शरण लेई

म्हारे सारे दुख बिसर गये सतगुरु की  हमने शरण लेई


 १  – और सखी सब दुबली हे तू बिरहन क्यों लाल  ,
          अविनाशी की सेज पे हे मोजां तो बहि निहाल  ,

मोहे लागी लग्न गुरु चरणन की

मोहे लागी लग्न गुरु चरणन की ,



१ - गुरु चरणन बिन मोहे कुछ ना भावे ,
     जग माया सब सम्पन की

मो को कहाँ दुंडे रे बंदे मै हूँ तेरे पास मै

मो  को  कहाँ दुंडे रे बंदे मै हूँ तेरे पास मै


१ - न तीर्थ में न मूर्त में न एकांत निवास में ,
     ना मन्दिर में ना मस्जिद में न काशी कैलास में ,


मैंने मानुष जन्म तुजको हिरा दिया अगर तु वृथ्था गवाए तो मै क्या करू

मैंने मानुष जन्म तुजको हिरा दिया अगर तु वृथ्था गवाए तो मै क्या करू
         रहता हूँ मै सदा तेरे पास रे तु नही जान पाए तो मै क्या करू



१ - मैंने खाने को अन्न दूध पैदा किया मेवा और मिष्ठान भी मैंने पैदा किया
      फिर भी हे निर्दयी जिब के स्वाद पर अगर तु मांस खाए तो मै क्या करू


मनवा तेरी आदत ने कोई बदलेगे हरीजन सुर

मनवा तेरी आदत ने कोई बदलेगे हरीजन सुर ,


१ - क्या बदलेगे चोर जुवारी माया के मजदूर
      मदिरा मांस भखे मस्ताने रहे नशे में चूर

मन लाग्यो मेरा फकीरी में

मन लाग्यो मेरा फकीरी में


१ - जो सुख पायो राम भजन  में
     सो सुख नहीं अमीरी में

मन परदेशी रे ये नही अपना देश

मन परदेशी रे ये नही अपना देश ,



१ - सत का कहना सत में रहना आनंद रूप किसी का भय ना ,
     जो कोई कहदे सबकी सहना ये है रटन हमेश ,

भोली ठगनी क्या नैन चमकावे तेरे हाथ संत नही आवे

भोली ठगनी क्या नैन चमकावे
तेरे हाथ संत नही आवे ,


१ - कदु काट मरदंग बनाया निम्बवा काट मंजीरा
      सात तुरिया मंगल गावे नाचे बालम खीरा ,

भलो ही दिन उगयो हे म्हारे सतगुरु आए आज

भलो ही दिन उगयो हे म्हारे सतगुरु आए आज


१ - म्हारे सतगुरु आंगन आए म्हाने ज्ञान विचार सुनाये ,
     म्हारे उर में आनंद छायो हे टूटी कुल की लाज ,

भजन बिना बाँवरे तने हिरा सा जन्म गवाया

  भजन बिना बाँवरे तने हिरा सा जन्म गवाया ,



१ - कदे न आवे साध संगत में कदे न हरी गुण गावे
       बै - २ मरा बैल की न्याई उठ सुबेरे खावे ,

भगवान मेरी नैया उस पर लगा देना

भगवान मेरी नैया उस पर लगा देना ,
अब तक तो निभाया है आगे भी निभा देना ,


१ - दुनिया के झंझटो में मै तुमको को भूल जाऊं ,
      पर नाथ स्वामी मेरे मुजको ना भुला देना ,

पाया है अब पाया है मेरे सतगुरु भेद बताया है

पाया है अब पाया है मेरे सतगुरु भेद बताया है ,



१ - माटी चाक कुम्हार फिरावे बर्तन नाना भांत बनावे ,
      किस्म - २ के रंग लगावे एक अनेक दिखाया है ,

दागी वही लगा रहे दाग को हम सदा से बेदागी हैं

दागी वही लगा रहे दाग को हम सदा से बेदागी हैं



१ - रंदे हुए को हम नही रांधे न शास्त्र से खीगे साधें
     अपने सर पे हम नही बांदे
     इस बेशर्मी की पाग को इस पाग से बैपागी हैं

दर्श बिना दुखन लागे री नैन

  दर्श बिना दुखन लागे री नैन



१ - जब से मै बिसरी स्याम मुरारी ,
     कबहू ना पायो सुख चैन ,

तेरा निर्मल रूप अनूप है नही हाड मास की काया

तेरा निर्मल रूप अनूप है नही हाड मास की काया



१ - तू नही पंच नही तन नही इन्द्रिया बुधि मन है
      तू तो सतचित आनंद घन है क्यूँ भुला अपने रूप को
      कर चेत फिरे भरमाया

तू खुद ही तो भगवान है

तू खुद ही तो भगवान है
आत्म रूप पिछानो नाही इसलिए पशु समान है


१ - अहंकार ने जब से घेरा मोह माया ने लाया डेरा
      कहन लगा सब मेरा मेरा बस यही तेरा अज्ञान है

जब गुरु मैहर करेगे कागा से हंस बनादे

जब गुरु मैहर करेगे कागा से हंस बनादे



१- जब गुरुवा की फिरजा माया पल में काग पलट ज्या काया ,
       जब गुरु सिर पै करदे छाया पल में सिखर चढ़ादे ,

गुरुवां बिन भाई राहे बतावे न कोई

गुरुवां बिन भाई राहे बतावे न कोई



१ - रामचन्द्र अवतार हो लिए जाणे है सब कोई ,
      गुरु वसिष्ठ से पुछन लागे जीवन मुक्त कैसे होई ,

गुरुवां ने दिया हेला रे तुम सुनियो संत सुजान

गुरुवां ने दिया हेला रे तुम सुनियो संत सुजान




१ - और जन्म तेरे बहुतेरे होंगे ,
       मानुष जन्म दुहेला रे तुम सुनियो संत सुजान ,

गुरु थारे बिना बिगड़ी नै कोण सुधारे

गुरु थारे बिना बिगड़ी नै कोण सुधारे



१ - एक दिन बिगड़ी गँज ग्रहा की दरिया के किनारे ,
       जों भर सुंड रहा जल उपर हरी का नाम पुकारे ,


गुरु जी म्हारे अवगुण चित न धरो

गुरु जी म्हारे अवगुण चित न धरो
समदर्शी है नाम तिहारो सोई पार करो



१ - एक नदिया एक नाल कुहावे मेलो ही नीर भरो ,
        होए वर्ण जब एक ही दर्शो दुजो भेद  टरो ,

कैसे मिलेंगे भगवान गुरु के बिना

कैसे मिलेंगे भगवान गुरु के बिना


१  – गंगा में नहाले चाहे जमुना में नहाले ,
         चाहे पढ़ नै वेद पुराण गुरु के बिना  ,

कल्पे मत ना काशब कुड़ी हे रमईया री बातां रुड़ी हे,

कल्पे मत ना काशब कुड़ी हे रमईया री बातां रुड़ी हे,
          भक्ति को भेद भारो हे लेव कोई संत पियारो हे,



१  – कछवा कछवी रह समंद में भजे हरी का नाम,
       आतो साधु देख के धार लियो विशवास,
       संत के चरना लागां हे पकड़ झोली में डालो हे

आवण जावण का संसा मिटजा मिटे भ्रम को खट्को

आवण जावण का संसा मिटजा मिटे भ्रम को खट्को
जामन मरण का संसा मिट्जा सुनाऊ थाने भ्रम ज्ञान को लटको




१ - पहली धारणा करो सेवा की गुरु चरणा में लिपटो ,
    मान अभिमान छोड़ सब मन को अभिमान परे पटको ,

कदर करो रे भाई मनुष्य जन्म की बार-२ नही आना है

कदर करो रे भाई मनुष्य जन्म की बार-२ नही आना है
लाखो आये लाखो जाये जगत मुसाफिर खाना है

१ - सचे सतगुरु के चरणों मे निश दिन शिश झुकाओ रे ,
      भेद भाव छोड़ सभी के मन मे अदर पाओ रे ,
      जो बिजोगे सो काटोगे बिज बदल नही जाना है ,

आनंद के खुले खजाने म्हारे सतगुरु के दरबार में

आनंद के खुले खजाने म्हारे सतगुरु के दरबार में,
क्या खाख छानता पगले इस दुनिया के बाजार में,



१  – धन में सुख देखने वाले धन वालों से पूछ लो,
           वे भी यूँ कहते है हम सुखी नही संसार में,

चोरासी की नीद से सतगुरु ने आन जगा दिया

चोरासी की नीद से सतगुरु ने आन जगा दिया



१ – जन्म – २ की भूल थी और भूल में वस्तु अनमोल थी ,
        दया करी गुरुदेव ने कव्वे से हंश बना दिया ,

क्यों चाल चले है काग की मैंने हंस जाण के पाला

क्यों चाल चले है काग की मैंने हंस जाण के पाला



१ - मै समझा हंस के बच्चे बहुत से चुगाये मोती सचे तुम तो 
        निकले मती के कच्चे,
        विरती बदली नही निरभाग की तेरा मन बिस्टे पर चाला,

आज म्हारे आंगन में हरी के प्यारे आए जी

 आज म्हारे आंगन में हरी के प्यारे आए जी



१  – हरा- २ गोबर आंगने लिपायो,
                मोतियन चाक पिरायो,

गुरु के समान दाता और ना जहान मे

गुरु के समान दाता और ना जहान मे


१- गुरु ब्रह्मा रूप मानो शिव का स्वरूप मानो,
    साक्षात् विष्णु जाणो लिखा है पुराण में,